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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के पीछे की राजनीति

मनीष कुमार
२५ जनवरी २०२४

केंद्र की बीजेपी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की घोषणा की है. लोकसभा चुनाव से पहले हुई इस घोषणा के बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत एक बार फिर चर्चा में है.

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कर्पूरी ठाकुर की तस्वीर के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पांच बार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से विभूषित किए जाने की अनुशंसा कर चुके हैं. तस्वीर: Manish Kumar/DW

नरेंद्र मोदी सरकार ने 23 जनवरी की रात अचानक ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की. बिहार के किसी भी राजनीतिक दल को शायद ही इसकी उम्मीद रही होगी.

कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म समस्तीपुर जिले के पितौंझिया में 24 जनवरी,1924 को हुआ था. अब यह गांव कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है. वह दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री, एक बार उप मुख्यमंत्री और एक बार सांसद बने. दशकों तक विधायक रहे. विरोधी दल के नेता के रूप में भी वह विपक्ष का भी हिस्सा रहे. 17 फरवरी,1988 को 64 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.

जयप्रकाश नारायण के बाद स्वतंत्रता सेनानी व शिक्षक रहे कर्पूरी ठाकुर बिहार के ऐसे दूसरे नेता हैं, जिन्होंने राजनीति को एक नया मोड़ दिया. उन्होंने पिछड़ों के बीच अति पिछड़ों को पहचान दी, मालगुजारी हटाई, गरीबों और पिछड़ों को नौकरी में आरक्षण दिया, आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त की, उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया. वह बिहार से चौथे व्यक्ति हैं, जिन्हें भारत रत्न दिया जाएगा. इसके पहले डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण (जेपी) और बिस्मिल्लाह खान को यह सम्मान मिल चुका है.

 

कर्पूरी ठाकुर की 100वीं साालगिरह पर उन्हें फूल-माला चढ़ाते नीतीश कुमार
नरेंद्र मोदी सरकार ने अचानक ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की. नीतीश कुमार ने इस फैसले पर खुशी जताई है. तस्वीर: Manish Kumar/DW


परिवारवाद व भ्रष्टाचार के धुर विरोधी

कर्पूरी ठाकुर ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो झोपड़ी में जन्मे और जब उनका निधन हुआ, तो उनके पास पुश्तैनी झोपड़ी के अलावा कोई दूसरा घर नहीं था. आज की राजनीति पर हावी जातिवाद, भ्रष्टाचार व परिवारवाद के वे धुर विरोधी थे. उनकी ईमानदारी के किस्से चलते हैं. कहा जाता है कि एक बार किसी ने घर बनवाने के लिए उन्हें पचास हजार ईंट भेजी. इससे उन्होंने घर की बजाय स्कूल बनवा दिया.

समाजवादी नेता दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं, ‘‘स्व-अनुशासन और नैतिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता गजब थी. वे चंदे के पैसे से हर बार चुनाव लड़ते थे और एक-एक पैसे का हिसाब खुद रखते थे. निजी काम में एक पैसा भी नहीं लगाते थे.''

कर्पूरी ठाकुर से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर है कि एक बार उन्हें किसी व्यक्ति ने पार्टी फंड के लिए ढाई रुपये का चंदा दिया था. उस समय तो वो इसकी रसीद नहीं दे सके, लेकिन बाद में अपने निजी सहायक से उस व्यक्ति को डाक के मार्फत रसीद भेजने को कहा. उनसे बताया गया कि चंदे की रकम से ज्यादा तो रजिस्टर्ड डाक में खर्च हो जाएगा. इस पर उन्होंने कहा, "सवाल ढाई रुपये का नहीं, विश्वसनीयता का है. उस व्यक्ति को यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि उसका पैसा पार्टी फंड में ही जमा हुआ है."

कर्पूरी ठाकुर के पुत्र व सांसद रामनाथ ठाकुर कहते हैं, ‘‘यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने अपना जीवन किसी परिजन को उपकृत करने या उन्हें लाभ पहुंचाने की अपेक्षा अपने सिद्धांतों व मूल्यों को प्रश्रय देने में व्यतीत किया. उनकी नजर में परिवारवाद और वंशवाद, लोकतंत्र के लिए काफी घातक था.''

कर्पूरी ठाकुर की सादगी से जुड़ा एक चर्चित प्रकरण है. उन्हें किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए समस्तीपुर जाना था. वो मुख्यमंत्री थे, जब हेलीपैड पर उतरे तो वहां न तो जिलाधिकारी थे और न ही कोई अन्य अधिकारी. कर्पूरी ठाकुर रिक्शे पर बैठे और कार्यक्रम स्थल के लिए निकल पड़े. बाद में अधिकारियों ने उन्हें कार में बैठाया और विलंब के लिए क्षमा मांगी. इस पर कर्पूरी ठाकुर ने जवाब दिया कि आप लोग तैयारी में लगे होंगे, इसलिए देर हो गई होगी.

कर्पूरी ठाकुर की तस्वीर पर माल्यार्पण करते बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी. जगह, पटना.
कई राजनीतिक चिंतक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं. तस्वीर: Hindustan Times/IMAGO


राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़


1988 से ही कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग की जा रही थी. कांग्रेस और गैर-कांग्रेसी सरकारों ने भी इस मांग पर ध्यान नहीं दिया. अब सम्मान देने की घोषणा के बाद राज्य की सभी पार्टियां एक सुर में कह रही हैं कि यह तो उनकी ही मांग थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि वह हमेशा से इसकी मांग कर रहे थे.

नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री पांच बार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से विभूषित किए जाने की अनुशंसा कर चुके हैं. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इसे सामाजिक न्याय के आंदोलनकारियों की जीत बताया है. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का कहना है कि डर ही सही, राजनीति को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा.

लालू यादव ने यह रेखांकित करने की कोशिश की है कि बिहार की महागठबंधन सरकार ने जातिवार गणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन समाज के हित में बढ़ाया. इसलिए बहुजन समाज के डर से ही केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया. आरजेडी ने जातिवार गणना के बाद बढ़ाए गए आरक्षण के दायरे को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भी की है.

राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी एक वीडियो जारी कर इसी आशय का संदेश दिया है. कर्पूरी जन्मशती समारोह को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने अब कांशीराम और राम मनोहर लोहिया को भारत रत्न का असली हकदार मानते हुए उन्हें भी यह सम्मान दिए जाने की मांग की है. इधर, बीजेपी ने भी कर्पूरी को आदर्श मानकर आगे बढ़ने के स्पष्ट संकेत दिए हैं.

 

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बीजेपी को क्यों याद आए कर्पूरी

2024 चुनावी साल है. ऐसे में कई राजनीतिक चिंतक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं. राजनीति विज्ञान के अवकाश प्राप्त लेक्चरर और राजनीतिक चिंतक एस के. शरण कहते हैं, ‘‘बीजेपी ने इस निर्णय से एक सधा हुआ दांव खेला है. उसकी नजर अति पिछड़ों के करीब 36 फीसद वोट बैंक पर है. बीजेपी इसे यह कहकर भुनाने की कोशिश करेगी कि जनसंघ के सहयोग से ही कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री बने थे और अब फिर बीजेपी ने ही उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिया है."

शरण आगे कहते हैं, "1990 से लेकर 2005 तक तो लालू भी केंद्रीय राजनीति में अहम भूमिका में रहे, क्यों नहीं इस ओर ध्यान दिया. जाहिर है, इसका असर तो होगा ही.'' बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी कहते हैं, ‘‘पीएम मोदी सबका साथ-सबका विश्वास के अभियान से कर्पूरी जी के सपनों को साकार कर रहे हैं. खुद पिछड़ा वर्ग से होने के कारण मोदी ने वंचित वर्ग के दर्द को समझा है.''